रविवार, 22 मार्च 2009

शिखरों की चढ़ान पर
विषम हवाओं को झेलते हुए
पुकारती हूँ तुम्हें
सुनती हूँ अपनी अनुगूंज
सहेजते हुए आशा किरण का उजास
डबडबाई आँखें लिए
थामते हुए अपने आँचल का छोर.

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